politics today
Wednesday, August 10, 2011
जन लोकपाल का विरोध कर भ्रस्टा चारियों को मजबूत एबम लोकतंत्र को कमजोर न करें
जनलोकपाल विधेयक कोई हव्वा नहीं है जिससे सब लोग डरे हुए हैं ,एसा भी नहीं की जनलोक पाल के तुरंत बाद हम इमानदार हो जायेंगे,हिंदुस्तान से बेईमानी और भारस्ता चार एकदम समाप्त हो जायेगा,क्या चोरी, डकैती , मर्डर ,रेप,आतंकवाद , के खिलाफ कानून होने से यह कृत्य रुक गए ,या रुक जायेंगे ,बिलकुल नहीं ,लेकिन अगर यहाँ चोरी, डकैती,मर्डर ,रेप,आतंकवाद, करने पर लगाम तो है ही,अपराधों पर नियंत्रण ही किया जा सकता है ,निर्मूल कभी नहीं नहीं किया जा सकता ,यह सब आदिकाल से चलता आरहा है ,और चलता रहेगा .जब कानून बनेगा तो कुछ लोगों, को तो जो कानून तोड़कर गैर कानूनी होने से डर लगेगा , स्वाभाविक है ,कानून से पंगा लेना इतना आसान नहीं ,एक न एक दिन उसे कानून की चक्की में बारीक पिसाई से गुजरना पड़ेगा ,कानून भले ही सजा देने मैं चूक जाये, पर कानूनी प्रक्रिया भी किसी सजा से कम नहीं,आज हमारी पुलिस को भी अपनी मनमानी रोकने के लिए काफी कानूनों से घेर दिया गया है ,चाहे उससे कानूनी प्रक्रिया जाच का कार्य धीमा पड़ा हो लेकिन हिराशत में मौत,फर्जी एनकाउंटर ,नबाबशाही पर काफी रोक लगी है ,लेकिन सांसदों पर नियंत्रण सिर्फ PM के अलावा किसी का नहीं ,अगर PM या सत्ता के सांसद भ्रस्टाचार करें तो उन्हें,रोकने टोकने वाला कोई नहीं ,आज सत्ता दलालों के हाथ गिरवी राखी हुई है ,सब जगह पूंजीपतियों का खेल चल रहा है ,असली दोषी पूंजीपति हैं जो सांसदों को खरीद कर मनचाहा मंत्री बना कर अपना मनमाना लाइसेंस बनबा कर जनता का खून चूस रहे हैं ,अगर कानून बनेगा तो थोडा ही सही ,खौफ तो होगा ,अभी तो इस प्रकार का सौदा है ,आप लाख रूपये का घोटाला कर रहे हैं तो 50 % अधिकारीयों और नेताओं को दे दो और नो टेंसन सर्टिफिकेट ले लो,अगर कानून को ताकतवर नहीं बनायेंगे , तो क्या आज का कानून प्रभावी रूप से भ्रस्टाचार को नियंत्रण करने में सक्षम है ,कानून में सदैव amendments होते रहते हैं ,जरूरत के अनुसार जरूरी भी हैं ,आज जो साइबर क्राइम हो रहे हैं उनके लिए सायबर क्राइम कानून और पुलिस बनानी पड़ी है ,क्या उसकी जरूरत आजादी के समय थी ,अगर आज जरूरत पड़ी तो और भी कानून बनाने पड़ेंगे ,इसमें शक नहीं की संविधान के नियमों में परिवर्तन का अधिकार सिर्फ संसद को ही है, और होना भी चाहिए लेकिन, जब सांसदों के खिलाफ ही जो कानून बन रहा है उस पर जनता का जोर नहीं दिया जाये तो संसद इसे कानून को क्यों कर पास करने लगी , आज जन लोकपाल की जरूरत क्यों पड़ी ,क्योंकि सीबीआई,और सी वी सी को प्रधान मंत्री की सलाह और नियंत्रण में कार्य करना होता है ,जबकि जन लोकपाल नियंत्रण से मुक्त होगा ,पिछले इतिहास में सदैव ही इन संस्थाओं का दुरुपयोग कर सरकार ने , सरकार पर उंगली उठाने वाले किसी भी व्यक्ति या संस्था का मुंह बंद करने के लिए, और अपने कुकृत्यों को ढकने के लिए किया जाता रहा है ,जन लोकपाल को दुरूपयोग से बचाने के लिए ,ही अन्ना जी प्रयाशरत हैं ,हमारे प्रधानमंत्री भी यह स्वीकार कर चुके हैं की प्रधानमंत्री भी जन लोकपाल के दायरे में होना चाहिए ,तो दूसरे भ्रस्ट नेताओं को डर से बचाने की बजाय ,उन्हें भ्रस्ताचार करने से दूर रहने की सलाह देनी चाहिए ,लोकपाल बिल को पहली बार ही पेश नहीं किया जा रहाहो ऐसी बात नहीं , इससे पूर्व सन 1971, 1977, 1985, 1989, 1996, 1998, 2001, 2005 and 2008 में भी पेश किया गया था, लेकिन संसद में कभी पास नहीं हो पाया .२०११ में अन्ना हजारे बाबा रामदेव ने इसको लागु करवाने का जन आन्दोलन करवाया तो रामदेव और उसके सहयोगियों के खिलाफ भी CBI का दुरुपयोग किया जा रहा है ,कितनी बिडम्बना की बात है ,इस देश की सरकार को सिर्फ उन लोगों के खिलाफ ही सीबीआई का दुरुपयोग त्वरित गति से करने की ही याद क्यों आती है जब कोई इनके काले कारनामो को उजागर करना चाहता है ,क्या कभी CBI का उपयोग आतंकवाद,भ्रस्ताचार, के खिलाफ किया गया ,आतंकवाद में हमारे नेता ही इन्वोल्व है ,क्या अरबों रूपये के घोटाले जो नेताओं ने किये उनके खिलाफ कभी CBI का उपयोग हुआ, कारण स्पस्ट है सरकार अपने बचाव के लिए सीबीआई CVC को ढाल के बतौर इस्तेमाल करती है ,अगर सिविल सोसाइटी अपना फर्ज नहीं निभाती हल्ला नहीं मचाती तो क्या पमसीबीआई को कनिमौझी,अ राजा , कलमाडी और अब शीला के खिलाफ जाँच की इजाजत देते ,भाइयो जो घोटाले हो रहे हैं उनमें सरकार का पैसा नहीं ,एक एक पैसा भारत के हरेक नागरिक द्वारा income tax ,service tax ,sales tax अनेकानेक taxes द्वारा आता है ,यह भारत के नागरिकों के पसीने की कमाई है,भ्रस्टा चारियों का साथ देकर,अन्ना जी के खिलाफ बोलकर ,सभी लोग करप्सन को बधाबा दे रहे हैं ,आप सब एक माचिस भी खरीदते हैं तो सरकार को टैक्स अदा पैसे का बोझ्हा आप उठाते हैं ,महेंगायी का रोना रोते है तो उसका कारण भी करप्सन है ,आप जो चाहे करें जन लोकपाल का विरोध कर भ्रस्टा चारियों को मजबूत एबम लोकतंत्र को कमजोर न करें....
Tuesday, August 9, 2011
is this democracy
भारत के मंत्रिमंडल का गठन प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सत्ता के दलाल करते हैं.हमारा भरोषा था ,हमने सरकार को चुना है ,हमें विस्वाश था ,सरकार नहीं तो विपक्ष अपना धर्म जरूर निभाएगा ,घोटाले पर घोटाले होते जारहे हैं फिर भी राष्ट्रीय मीडिया और विपक्षी पार्टियों ने खामोशी क्यों ,अख्तियार कर रखी है? संचार मंत्री ए राजा और उनकी सखी नीरा राडिया के द्वारा बनाई हुई सरकार क्या सही माईने में लोकतान्त्रिक सरकार है ,अन्ना हजारे जैसे ,निस्वार्थ लोगो को ब्लैक मेलर बता कर ,सरकार क्या साबित करना चाहती है ,बीजेपी,CPI .सीपीएम,जनता दल ,अन्य विपक्षी दल चुप क्यों हैं .अपना विपक्षी धर्मं क्यों नहीं निभा रहे ,क्योकि कोयले की दलाली में सबके हाथ काले हैं ,फिर भी कहा जा रहा है ,अन्ना ब्लैक मैलिंग कर रहा है ,ब्लैक मेलर तो वो होता है जो ,पोल खोलने की धमकी देकर ,कुछ हासिल करना चाहता है ,कहीं अन्ना हजारे जी PM बनाने की फ़िराक में तो नहीं ? क्या एसी चुनी हुई, सरकार .सचमुच में पक्ष, विपक्ष का धर्मं निभाएगी या अपना स्वार्थ साधेगी ,क्या इनको खुला छोड़ देने पर लोकतंत्र काम कर लेगा ?या सिविल सोसाइटी जैसे संगठनों को इनको लाइन पर लाना होगा \ ब्लॉग पढ़िए ....
चौंसठ हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला करने के बाद भी संचार मंत्री ए राजा बड़े ठाठ से अपने पद पर क्या इसलिए रहे, क्योंकि उनके रिश्ते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मधुर हैं? जनता दल अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी आरोप लगाते हैं कि 2 जी स्पेक्ट्रम सौदे में सोनिया गांधी के केमैन आइलैंड स्थित बैंक ऑफ अमेरिका के खाते में करोड़ों डॉलर की एंट्री हुई है और इसके तमाम काग़ज़ात उनके पास मौजूद हैं. बहरहाल, क्या भाजपा इस मसले पर इसलिए ख़ामोश है, क्योंकि नैनो कार के प्लांट को गुजरात में स्थापित करने में ए राजा की ख़ासमख़ास दोस्त नीरा राडिया ने अहम भूमिका निभाई थी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राज्य के औद्योगिक विकास और राज्य में पूंजी निवेश का यह बेहतरीन मौक़ा था. या फिर वजह यह है कि ए राजा ने भाजपा के ख़ासमख़ास, मुंबई में डीबी रियलिटी एवं अवश्या नाम की कंपनी के ज़रिए रियल स्टेट का धंधा करने वाले और यूनीटेक वायरलेस के मालिक शाहीद बलवा को नियमों के ख़िला़फ जा कर 2 जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस दे दिया गया, जिससे उसने नार्वे की कंपनी से 1661 करोड़ रुपये के एवज में 6200 करोड़ रुपये कमाए. या इसलिए कि जब ए राजा पर्यावरण मंत्री थे, तब उन्होंने बेजा तरीक़ों से रेड्डी बंधुओं की कई ग़ैर क़ानूनी खानों को क्लीयरेंस सर्टीफिकेट दे दिए थे. या फिर दलाल नीरा राडिया से अपने दिग्गज नेता अनंत कुमार की गहरी नज़दीकियों के कारण भाजपा ने अपनी ज़ुबान पर ताले जड़ लिए हैं. अनंत कुमार जब नागरिक उड्डयन मंत्री थे, तब सुपर दलाल नीरा राडिया मैज़िक एयर के नाम से अपना एयरलाइंस शुरू करना चाहती थीं और वह भी महज़ एक लाख रुपये में. नीरा राडिया के दीवाने अनंत कुमार ने नीरा के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मसले की नज़ाकत समझी और उन्होंने अनंत कुमार के उत्साह पर पानी फेरते हुए नीरा के प्रस्ताव पर विचार करने तक से मना कर दिया. ख़ैर, कांग्रेस को घेरने के जोश के अतिरेक में भाजपा नेता अरुण जेटली ने संसद में इस मुद्दे को उछाल तो दिया, पर जब भाजपा नेतृत्व को लगा कि इस कीचड़ में उनका दामन भी दागदार होना है तो भाजपा नेताओं ने चुप बैठ जाना ही मुनासिब समझा. आज की तारीख़ में आप किसी भी भाजपा नेता से पूछ लीजिए, वह सुपर कॉरपोरेट दलाल नीरा राडिया को नहीं जानता. यहां तक कि संसद में अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले अरुण जेटली भी कहते हैं कि उन्हें स़िर्फ घोटाले की जानकारी है, नीरा राडिया क्या बला है, उन्हें नहीं पता. वैसे तो सीपीआई नेता सीताराम येचुरी ने भी 29 फरवरी 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर संचार मंत्री ए राजा द्वारा 2 जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस जारी करने संबंधी निर्देशों को ख़ारिज करने को कहा था, क्योंकि वे निर्देश नियमों के विरुद्ध दिए गए थे और सीताराम येचुरी को यह अंदेशा था कि इसमें बहुत बड़े स्तर पर धांधली की गई है. पर जैसे ही राजा के साथ नीरा राडिया का नाम उछला और नीरा की फोन टैपिंग के रिकॉर्ड आम हुए, सीपीआई और सीपीएम नेताओं को भी मानो सांप सूंघ गया, क्योंकि आज की तारीख़ में वामपंथियों के सबसे बड़े नेता प्रकाश करात ने नीरा राडिया के कहने पर ही हल्दिया पेट्रोकेमिकल सौदे में रिलायंस की मदद की थी. यह बात भी साफ हो गई कि नीरा के कई महत्वपूर्ण एवं बड़े वामपंथी और सीटू नेताओं से क़रीबी संबंध रहे हैं. इसके अलावा नीरा राडिया उन तमाम औद्योगिक घरानों के लिए दलाली का काम करती रही है, जिनसे सीपीआई-सीपीएम का साबका किसी न किसी बहाने पड़ता रहा है. आज जब सीताराम येचुरी से यह पूछा जाता है कि क्यों नहीं वे लोग ए राजा के ख़िला़फ लामबंद हो रहे और नीरा राडिया की अविलंब गिरफ़्तारी की मांग सरकार से करते, तो वह मीठी सी मुस्कुराहट के साथ जवाब देते हैं कि उन्होंने तो बहुत पहले ही 2 जी स्पेक्ट्रम में हो रहे घोटालों के बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. हां, नीरा राडिया कौन है, इसकी विशेष जानकारी उन्हें नहीं. ख़बरों की मार्फत ही उन्हें यह पता चल पाया है.
2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के घोटाले के पर्दाफाश ने देश के नामचीन पत्रकारों, नौकरशाहों, राजनेताओं और बड़े पूंजीपतियों के दोयम चरित्र को बेनकाब कर दिया है. साफ हो चुका है कि भारत के मंत्रिमंडल का गठन प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सत्ता के दलाल करते हैं. फिर भी राष्ट्रीय मीडिया और विपक्षी पार्टियों ने खामोशी अख्तियार कर रखी है, क्योंकि संचार मंत्री ए राजा और उनकी सखी नीरा राडिया के घोटालों में सबके हाथ काले हैं.
वहीं सीपीएम के बुज़ुर्ग नेता ए बी वर्धन यह सवाल सुनते ही भड़क उठते हैं कि क्या उन्हें नीरा राडिया के बारे में पता है? नाराज़गी भरे लहजे में वह कहते हैं कि देश में ग़रीब जनता से जुड़ी इतनी समस्याएं हैं और आप हैं कि नीरा राडिया की चिंता में दुबली हुई जा रही हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तो नीरा राडिया के नाम पर बात करने को तो क्या, मिलने तक को राजी नहीं होते. गोया, जैसे उन्होंने अगर इस मसले पर अपना मुंह खोल लिया तो गुनाह हो जाएगा. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की चुप्पी भी ज़हन में कई सवाल खड़े करती है. सबकी ख़बर रखने वाले और हर किसी की दुखती रग पर हाथ रखने को हमेशा तैयार रहने वाले लालू प्रसाद भी नीरा राडिया से उतने ही अनभिज्ञ हैं, जितने कि उनके दूसरे सियासी साथी. नीरा का नाम सुनकर लालू यादव घूर कर देखते हैं और अपनी नज़रें फिरा लेते हैं.
कौन है नीरा राडिया? यह सुनते ही जनता दल अध्यक्ष शरद यादव की पहले से ख़राब चल रही तबियत कुछ और बिगड़ जाती है. वह कहते हैं कि इस बारे में वह कभी बाद में बातें करेंगे. फिलहाल तो वह अस्पताल जा रहे हैं. जबकि सच यही है कि इन सभी को मालूम है कि नीरा राडिया कौन है और न स़िर्फ ए राजा, बल्कि अन्य कई रसूखदार नेताओं के साथ नीरा की जुगलबंदी का राज क्या है? पर मसला यह कि दल और जमात से इतर सभी नेताओं के पेंच कॉरपोरेट मामलों की दलाली के मामलों में कहीं न कहीं फंसे हुए हैं या सीधे तौर पर यह कह लें कि दलाली के इस हमाम में सभी नंगे हैं. लिहाज़ा ज़ुबान खोलना ख़ुद के लिए ही ख़तरनाक हो सकता है, इसलिए सभी चुप हैं. और तो और, बड़े पत्रकार कहे जाने वाले बरखा दत्त और वीर सांघवी के नामों की चर्चा करते हुए भी इन दिग्गज नेताओं की ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है. जिन औद्योगिक घरानों के लिए नीरा दलाली का काम करती रही है. वे सभी घराने देश की सभी बड़ी पार्टियों से जुड़े हैं. सभी जानते हैं कि टाटा, अंबानी, मित्तल जैसे पूंजीपति ही इन दलों की आर्थिक रीढ़ हैं. पार्टियों के रोज़ाना ख़र्चे से लेकर चुनाव तक का भार ये कुबेर उठाते ही इसलिए हैं कि उनके पोषित दल सत्ता के साझीदार बनें तो उनके सारे जायज़-नाजायज़ काम बग़ैर नियम-क़ानून के धड़ल्ले से हो सकें. तो चूंकि हाथ सबके काले हैं तो अब कौन किसके चेहरे पर कालिख़ मले?
कौन है नीरा राडिया? यह सुनते ही जनता दल अध्यक्ष शरद यादव की पहले से ख़राब चल रही तबियत कुछ और बिगड़ जाती है. वह कहते हैं कि इस बारे में वह कभी बाद में बातें करेंगे. फिलहाल तो वह अस्पताल जा रहे हैं. जबकि सच यही है कि इन सभी को मालूम है कि नीरा राडिया कौन है और न स़िर्फ ए राजा, बल्कि अन्य कई रसूखदार नेताओं के साथ नीरा की जुगलबंदी का राज क्या है? पर मसला यह कि दल और जमात से इतर सभी नेताओं के पेंच कॉरपोरेट मामलों की दलाली के मामलों में कहीं न कहीं फंसे हुए हैं या सीधे तौर पर यह कह लें कि दलाली के इस हमाम में सभी नंगे हैं.
ये बरखा दत्त और वीर सांघवी की टीआरपी ही है, जो कोई भी इनके ख़िला़फ मुंह खोलने को तैयार नहीं. पायोनियर, द हिंदू, मिड डे जैसे अख़बार और मीडिया पोर्टल भड़ास फॉर मीडिया की बात छोड़ दें तो दूसरे किसी भी अख़बार ने इस मुद्दे पर सुगबुगाहट तक नहीं दिखाई है. छोटी से छोटी ख़बरों को तान देने वाले न्यूज़ चैनल तो जैसे अंधे-बहरे बने बैठे हैं. शशि थरूर, लालू यादव, मायावती, बंगारू लक्ष्मण आदि के मसलों पर हफ्तों चीखने वाले न्यूज़ चैनलों को कुछ भी दिखाई-सुनाई नहीं दे रहा है. ये उनकी आर्थिक मजबूरी है या यह डर कि उनके चैनलों के नामचीन पत्रकार भी चैनलों के हितार्थ कहीं न कहीं दलाली का प्रपंच रच रहे हैं. सभी अपनी-अपनी टीआरपी भुना रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो बेहद घाटे में चल रहा एनडीटीवी का व्यवसायिक घाटा एक साल में ही इतना कम नहीं हो गया होता. यह नीरा राडिया और बरखा के मैनेजमेंट का ही कमाल है, जिसके तहत हाई प्रोफाइल इंटरव्यू किए गए और खुलेआम उन लोगों की इमेज मेकिंग का काम किया गया. ऐसे में एनडीटीवी प्रबंधन तो बरखा के ख़िला़फ जा ही नहीं सकता. सरकार भी कोई कार्रवाई करने की नहीं सोच सकती. सत्ता के गलियारे में प्रियंका गांधी, जयंती नटराजन, पी चिदंबरम, शशि थरूर से लेकर फारुख अब्दुल्ला तक से बरखा की गहरी छनती है. फारुख अब्दुल्ला तो बरखा के इतने मुरीद हैं कि हाल ही में एनडीटीवी के एक टॉक शो में उन्होंने एंकर बरखा से ऑन एयर बड़े ही शायराना अंदाज़ से कहा कि बरखा, हमारे-तुम्हारे रिश्तों की चर्चा तो संसद के गलियारों तक हुई है. बरखा की सियासी दबंगई का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एडमिरल सुरीश मेहता ने कारगिल युद्ध के दौरान बरखा को तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था. बरखा कारगिल का लाइव कवरेज कर रही थी. इस दरम्यान वह अपनी ख़बरों को पुख्ता बनाने और सनसनी फैलाने की गरज से भारतीय जवानों की सही पोज़ीशन का भी ज़िक्र कर रही थी. मोर्चे पर तैनात जवान बार-बार बरखा को ऐसा करने से मना कर रहे थे, पर बरखा नहीं मानी. सुरीश मेहता ने 4 दिसंबर 2008 को नेवी डे के मौक़े पर पत्रकारों से यह बात कही कि ग़ैर ज़िम्मेदाराना कवरेज की वजह से तीन जवानों ने अपनी ज़िंदगी गंवा दी. पाकिस्तानी सैनिकों ने बरखा के बताए ठिकाने को ट्रेस कर भारतीय जवानों की जान ले ली. हालांकि एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय ने सुरीश मेहता की बात को सरासर बेबुनियाद बताया था. एडमिरल मेहता आज भी अपनी बात पर कायम हैं.
वीर सांघवी तो ख़ैर ख़ुद राज्यसभा सदस्य बनते-बनते रह गए, पर उन्होंने सत्ता की जोड़-तोड़ में महारत हासिल कर ली. वह न स़िर्फ भारत के राजनीतिज्ञों पर, बल्कि विदेशी सियासत में भी खासी दख़ल रखते हैं. क़ानूनी तौर पर वेश्यावृत्ति के लिए मशहूर थाइलैंड सरीखे देश के प्रधानमंत्री ने वीर को द फ्रेंड ऑफ थाइलैंड अवार्ड से सम्मानित किया है. अरबपतियों से ख़ातिरदारी कराने में वीर सांघवी पुराने माहिर हैं. वह टाटा समूह के आलीशान होटलों में ठहरते हैं तो उनकी विमान यात्राओं का बिल अंबानी भरते हैं. ज़ाहिर है, इन सबके एवज में वीर सांघवी सरकारी गलियारे में नीरा राडिया जैसी दलालों की बैसाखी बन अपनी पत्रकारिता की बोली लगाते हैं.
जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में ही जब ए राजा पर ढेरों आरोप लगे थे, तब भी उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मर्ज़ी के ख़िला़फ दोबारा संचार मंत्री बनाया गया. तो इसका साफ मतलब है कि इसमें सोनिया गांधी की सहमति थी. और अगर ऐसा नहीं था तो इसका आशय यह है कि यूपीए सरकार में मंत्री सत्ता के दलाल बनाते हैं, न कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह. 29 नवंबर 2008 को सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा के ख़िला़फ तमाम सबूत सौंपते हुए पत्र लिखा कि ए राजा को मंत्रिमंडल से फौरन हटा दिया जाए, क्योंकि वह लगातार घोटाले कर रहे हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. 31 अक्टूबर 2009, 8 मार्च और 13 मार्च 2010 को सुब्रमण्यम स्वामी ने फिर से मनमोहन सिंह के नाम चिट्ठियां लिखीं, तब 19 मार्च 2010 को स्वामी के पास केंद्र का जवाब आया कि राजा को कैबिनेट से हटाने या उन पर मुक़दमा चलाने का फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि अभी जांच चल रही है और सबूत इकट्ठे किए जा रहे हैं. आख़िरकार 12 अप्रैल 2010 को स्वामी ने अदालत में इस सिलसिले में अपनी याचिका दाख़िल की. अदालत ने उनकी अपील मान ली है. स्वामी की याचिका पर गर्मी की छुट्टियों के बाद सुनवाई होगी.
लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार को इस महाघोटाले के बाबत कोई जानकारी नहीं थी. नीरा राडिया और राजा के बीच बातचीत के टेपों के आधार पर आयकर विभाग ने सरकार को अपनी अंतरिम जांच रिपोर्ट जुलाई 2009 में ही सौंप दी थी. सरकार इस काले धंधे की हक़ीक़त से वाक़ि़फ हो चुकी थी. फिर भी वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, क्योंकि इस खेल में अगर नीरा राडिया नायिका के तौर पर भूमिका निभा रही थी तो कांग्रेस के कई कद्दावर नेता नीरा के मोहरे के तौर पर इस्तेमाल हो रहे थे. सरकार की नीतियों और नियमों को प्रभावित करने वाले कॉरपोरेट जगत के एक मज़बूत हिस्से जैसे टाटा, अंबानी, वेदांता, सहारा एयरलाइंस, रेमंड, सीआईआई, डीबी, यूनीटेक, स्टार न्यूज़, एनडीटीवी, नई दुनिया, न्यूज़ एक्स आदि नीरा राडिया की गोद में खेल रहे थे. नीरा की कंपनियों में भारत सरकार के दिग्गज नौकरशाह रह चुके पूर्व ऊर्जा सचिव और ट्राई अध्यक्ष प्रदीप बैजल, पूर्व वित्त सचिव सी एम वासुदेव, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन एस के नरुला, फॉरेन इंवेस्टमेंट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अजय दुआ वग़ैरह सलाहकार और निदेशक के तौर पर नीरा के जरख़रीद बन कर उसका हुक्म बजा रहे हैं. ज़ाहिर सी बात है, नीरा राडिया महज़ एक दलाल होते हुए भी इतनी मज़बूत है कि सरकार अगर उसके ख़िला़फ कार्रवाई करती है तो यह उसके अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारने सरीखा होगा. यही वजह है कि मामले की जांच करने वाले सीबीआई डीआईजी विनीत अग्रवाल ने जब सरकार से दोषियों पर मुक़दमा चलाने की इजाज़त मांगी तो उनका तबादला कर वापस उनके होम काडर भेज दिया गया.
सोचिए ज़रा, आईपीएल विवाद में शशि थरूर और उनकी मित्र सुनंदा पुष्कर की क्या फज़ीहत हुई. राहुल गांधी के ख़ास होने के बावजूद शशि का मंत्रालय उनके हाथ से निकल गया. साठ करोड़ का बोफोर्स घोटाला हुआ और देश की सरकार बदल गई. पर 60 हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद भी संचार मंत्री ए राजा न स़िर्फ अपने पद पर बने हुए हैं, बल्कि उनकी चहेती नीरा राडिया अपना सारा माल समेट कर लंदन में ऐश कर रही है. और तो और, भारत में उसकी सभी पीआर कंपनियां अपना काम पहले की तरह ही ठाठ से कर रही हैं, पर सरकार चुप है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ख़ामोश हैं. भारतीय युवाओं को मेहनत और ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले और विरोधियों की ख़ामियों पर धारदार हमला बोलने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी मूकदर्शक की भूमिका में हैं. क्या वाकई नीरा राडिया के रिश्ते सोनिया गांधी से घनिष्ठता भरे हैं? क्योंकि नीरा राडिया तो यही प्रचारित कर रही है. यक़ीनन, ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी को चाहिए कि वह साबित करें कि उनका नीरा राडिया और इस घोटाले से कोई संबंध नहीं है और डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी झूठ बोल रहे हैं तथा इसकी शुरुआत तत्काल इस पूरे मामले की गंभीर जांच की घोषणा से हो...............
चौंसठ हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला करने के बाद भी संचार मंत्री ए राजा बड़े ठाठ से अपने पद पर क्या इसलिए रहे, क्योंकि उनके रिश्ते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मधुर हैं? जनता दल अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी आरोप लगाते हैं कि 2 जी स्पेक्ट्रम सौदे में सोनिया गांधी के केमैन आइलैंड स्थित बैंक ऑफ अमेरिका के खाते में करोड़ों डॉलर की एंट्री हुई है और इसके तमाम काग़ज़ात उनके पास मौजूद हैं. बहरहाल, क्या भाजपा इस मसले पर इसलिए ख़ामोश है, क्योंकि नैनो कार के प्लांट को गुजरात में स्थापित करने में ए राजा की ख़ासमख़ास दोस्त नीरा राडिया ने अहम भूमिका निभाई थी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राज्य के औद्योगिक विकास और राज्य में पूंजी निवेश का यह बेहतरीन मौक़ा था. या फिर वजह यह है कि ए राजा ने भाजपा के ख़ासमख़ास, मुंबई में डीबी रियलिटी एवं अवश्या नाम की कंपनी के ज़रिए रियल स्टेट का धंधा करने वाले और यूनीटेक वायरलेस के मालिक शाहीद बलवा को नियमों के ख़िला़फ जा कर 2 जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस दे दिया गया, जिससे उसने नार्वे की कंपनी से 1661 करोड़ रुपये के एवज में 6200 करोड़ रुपये कमाए. या इसलिए कि जब ए राजा पर्यावरण मंत्री थे, तब उन्होंने बेजा तरीक़ों से रेड्डी बंधुओं की कई ग़ैर क़ानूनी खानों को क्लीयरेंस सर्टीफिकेट दे दिए थे. या फिर दलाल नीरा राडिया से अपने दिग्गज नेता अनंत कुमार की गहरी नज़दीकियों के कारण भाजपा ने अपनी ज़ुबान पर ताले जड़ लिए हैं. अनंत कुमार जब नागरिक उड्डयन मंत्री थे, तब सुपर दलाल नीरा राडिया मैज़िक एयर के नाम से अपना एयरलाइंस शुरू करना चाहती थीं और वह भी महज़ एक लाख रुपये में. नीरा राडिया के दीवाने अनंत कुमार ने नीरा के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मसले की नज़ाकत समझी और उन्होंने अनंत कुमार के उत्साह पर पानी फेरते हुए नीरा के प्रस्ताव पर विचार करने तक से मना कर दिया. ख़ैर, कांग्रेस को घेरने के जोश के अतिरेक में भाजपा नेता अरुण जेटली ने संसद में इस मुद्दे को उछाल तो दिया, पर जब भाजपा नेतृत्व को लगा कि इस कीचड़ में उनका दामन भी दागदार होना है तो भाजपा नेताओं ने चुप बैठ जाना ही मुनासिब समझा. आज की तारीख़ में आप किसी भी भाजपा नेता से पूछ लीजिए, वह सुपर कॉरपोरेट दलाल नीरा राडिया को नहीं जानता. यहां तक कि संसद में अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले अरुण जेटली भी कहते हैं कि उन्हें स़िर्फ घोटाले की जानकारी है, नीरा राडिया क्या बला है, उन्हें नहीं पता. वैसे तो सीपीआई नेता सीताराम येचुरी ने भी 29 फरवरी 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर संचार मंत्री ए राजा द्वारा 2 जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस जारी करने संबंधी निर्देशों को ख़ारिज करने को कहा था, क्योंकि वे निर्देश नियमों के विरुद्ध दिए गए थे और सीताराम येचुरी को यह अंदेशा था कि इसमें बहुत बड़े स्तर पर धांधली की गई है. पर जैसे ही राजा के साथ नीरा राडिया का नाम उछला और नीरा की फोन टैपिंग के रिकॉर्ड आम हुए, सीपीआई और सीपीएम नेताओं को भी मानो सांप सूंघ गया, क्योंकि आज की तारीख़ में वामपंथियों के सबसे बड़े नेता प्रकाश करात ने नीरा राडिया के कहने पर ही हल्दिया पेट्रोकेमिकल सौदे में रिलायंस की मदद की थी. यह बात भी साफ हो गई कि नीरा के कई महत्वपूर्ण एवं बड़े वामपंथी और सीटू नेताओं से क़रीबी संबंध रहे हैं. इसके अलावा नीरा राडिया उन तमाम औद्योगिक घरानों के लिए दलाली का काम करती रही है, जिनसे सीपीआई-सीपीएम का साबका किसी न किसी बहाने पड़ता रहा है. आज जब सीताराम येचुरी से यह पूछा जाता है कि क्यों नहीं वे लोग ए राजा के ख़िला़फ लामबंद हो रहे और नीरा राडिया की अविलंब गिरफ़्तारी की मांग सरकार से करते, तो वह मीठी सी मुस्कुराहट के साथ जवाब देते हैं कि उन्होंने तो बहुत पहले ही 2 जी स्पेक्ट्रम में हो रहे घोटालों के बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. हां, नीरा राडिया कौन है, इसकी विशेष जानकारी उन्हें नहीं. ख़बरों की मार्फत ही उन्हें यह पता चल पाया है.
2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के घोटाले के पर्दाफाश ने देश के नामचीन पत्रकारों, नौकरशाहों, राजनेताओं और बड़े पूंजीपतियों के दोयम चरित्र को बेनकाब कर दिया है. साफ हो चुका है कि भारत के मंत्रिमंडल का गठन प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सत्ता के दलाल करते हैं. फिर भी राष्ट्रीय मीडिया और विपक्षी पार्टियों ने खामोशी अख्तियार कर रखी है, क्योंकि संचार मंत्री ए राजा और उनकी सखी नीरा राडिया के घोटालों में सबके हाथ काले हैं.
वहीं सीपीएम के बुज़ुर्ग नेता ए बी वर्धन यह सवाल सुनते ही भड़क उठते हैं कि क्या उन्हें नीरा राडिया के बारे में पता है? नाराज़गी भरे लहजे में वह कहते हैं कि देश में ग़रीब जनता से जुड़ी इतनी समस्याएं हैं और आप हैं कि नीरा राडिया की चिंता में दुबली हुई जा रही हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तो नीरा राडिया के नाम पर बात करने को तो क्या, मिलने तक को राजी नहीं होते. गोया, जैसे उन्होंने अगर इस मसले पर अपना मुंह खोल लिया तो गुनाह हो जाएगा. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की चुप्पी भी ज़हन में कई सवाल खड़े करती है. सबकी ख़बर रखने वाले और हर किसी की दुखती रग पर हाथ रखने को हमेशा तैयार रहने वाले लालू प्रसाद भी नीरा राडिया से उतने ही अनभिज्ञ हैं, जितने कि उनके दूसरे सियासी साथी. नीरा का नाम सुनकर लालू यादव घूर कर देखते हैं और अपनी नज़रें फिरा लेते हैं.
कौन है नीरा राडिया? यह सुनते ही जनता दल अध्यक्ष शरद यादव की पहले से ख़राब चल रही तबियत कुछ और बिगड़ जाती है. वह कहते हैं कि इस बारे में वह कभी बाद में बातें करेंगे. फिलहाल तो वह अस्पताल जा रहे हैं. जबकि सच यही है कि इन सभी को मालूम है कि नीरा राडिया कौन है और न स़िर्फ ए राजा, बल्कि अन्य कई रसूखदार नेताओं के साथ नीरा की जुगलबंदी का राज क्या है? पर मसला यह कि दल और जमात से इतर सभी नेताओं के पेंच कॉरपोरेट मामलों की दलाली के मामलों में कहीं न कहीं फंसे हुए हैं या सीधे तौर पर यह कह लें कि दलाली के इस हमाम में सभी नंगे हैं. लिहाज़ा ज़ुबान खोलना ख़ुद के लिए ही ख़तरनाक हो सकता है, इसलिए सभी चुप हैं. और तो और, बड़े पत्रकार कहे जाने वाले बरखा दत्त और वीर सांघवी के नामों की चर्चा करते हुए भी इन दिग्गज नेताओं की ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है. जिन औद्योगिक घरानों के लिए नीरा दलाली का काम करती रही है. वे सभी घराने देश की सभी बड़ी पार्टियों से जुड़े हैं. सभी जानते हैं कि टाटा, अंबानी, मित्तल जैसे पूंजीपति ही इन दलों की आर्थिक रीढ़ हैं. पार्टियों के रोज़ाना ख़र्चे से लेकर चुनाव तक का भार ये कुबेर उठाते ही इसलिए हैं कि उनके पोषित दल सत्ता के साझीदार बनें तो उनके सारे जायज़-नाजायज़ काम बग़ैर नियम-क़ानून के धड़ल्ले से हो सकें. तो चूंकि हाथ सबके काले हैं तो अब कौन किसके चेहरे पर कालिख़ मले?
कौन है नीरा राडिया? यह सुनते ही जनता दल अध्यक्ष शरद यादव की पहले से ख़राब चल रही तबियत कुछ और बिगड़ जाती है. वह कहते हैं कि इस बारे में वह कभी बाद में बातें करेंगे. फिलहाल तो वह अस्पताल जा रहे हैं. जबकि सच यही है कि इन सभी को मालूम है कि नीरा राडिया कौन है और न स़िर्फ ए राजा, बल्कि अन्य कई रसूखदार नेताओं के साथ नीरा की जुगलबंदी का राज क्या है? पर मसला यह कि दल और जमात से इतर सभी नेताओं के पेंच कॉरपोरेट मामलों की दलाली के मामलों में कहीं न कहीं फंसे हुए हैं या सीधे तौर पर यह कह लें कि दलाली के इस हमाम में सभी नंगे हैं.
ये बरखा दत्त और वीर सांघवी की टीआरपी ही है, जो कोई भी इनके ख़िला़फ मुंह खोलने को तैयार नहीं. पायोनियर, द हिंदू, मिड डे जैसे अख़बार और मीडिया पोर्टल भड़ास फॉर मीडिया की बात छोड़ दें तो दूसरे किसी भी अख़बार ने इस मुद्दे पर सुगबुगाहट तक नहीं दिखाई है. छोटी से छोटी ख़बरों को तान देने वाले न्यूज़ चैनल तो जैसे अंधे-बहरे बने बैठे हैं. शशि थरूर, लालू यादव, मायावती, बंगारू लक्ष्मण आदि के मसलों पर हफ्तों चीखने वाले न्यूज़ चैनलों को कुछ भी दिखाई-सुनाई नहीं दे रहा है. ये उनकी आर्थिक मजबूरी है या यह डर कि उनके चैनलों के नामचीन पत्रकार भी चैनलों के हितार्थ कहीं न कहीं दलाली का प्रपंच रच रहे हैं. सभी अपनी-अपनी टीआरपी भुना रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो बेहद घाटे में चल रहा एनडीटीवी का व्यवसायिक घाटा एक साल में ही इतना कम नहीं हो गया होता. यह नीरा राडिया और बरखा के मैनेजमेंट का ही कमाल है, जिसके तहत हाई प्रोफाइल इंटरव्यू किए गए और खुलेआम उन लोगों की इमेज मेकिंग का काम किया गया. ऐसे में एनडीटीवी प्रबंधन तो बरखा के ख़िला़फ जा ही नहीं सकता. सरकार भी कोई कार्रवाई करने की नहीं सोच सकती. सत्ता के गलियारे में प्रियंका गांधी, जयंती नटराजन, पी चिदंबरम, शशि थरूर से लेकर फारुख अब्दुल्ला तक से बरखा की गहरी छनती है. फारुख अब्दुल्ला तो बरखा के इतने मुरीद हैं कि हाल ही में एनडीटीवी के एक टॉक शो में उन्होंने एंकर बरखा से ऑन एयर बड़े ही शायराना अंदाज़ से कहा कि बरखा, हमारे-तुम्हारे रिश्तों की चर्चा तो संसद के गलियारों तक हुई है. बरखा की सियासी दबंगई का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एडमिरल सुरीश मेहता ने कारगिल युद्ध के दौरान बरखा को तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था. बरखा कारगिल का लाइव कवरेज कर रही थी. इस दरम्यान वह अपनी ख़बरों को पुख्ता बनाने और सनसनी फैलाने की गरज से भारतीय जवानों की सही पोज़ीशन का भी ज़िक्र कर रही थी. मोर्चे पर तैनात जवान बार-बार बरखा को ऐसा करने से मना कर रहे थे, पर बरखा नहीं मानी. सुरीश मेहता ने 4 दिसंबर 2008 को नेवी डे के मौक़े पर पत्रकारों से यह बात कही कि ग़ैर ज़िम्मेदाराना कवरेज की वजह से तीन जवानों ने अपनी ज़िंदगी गंवा दी. पाकिस्तानी सैनिकों ने बरखा के बताए ठिकाने को ट्रेस कर भारतीय जवानों की जान ले ली. हालांकि एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय ने सुरीश मेहता की बात को सरासर बेबुनियाद बताया था. एडमिरल मेहता आज भी अपनी बात पर कायम हैं.
वीर सांघवी तो ख़ैर ख़ुद राज्यसभा सदस्य बनते-बनते रह गए, पर उन्होंने सत्ता की जोड़-तोड़ में महारत हासिल कर ली. वह न स़िर्फ भारत के राजनीतिज्ञों पर, बल्कि विदेशी सियासत में भी खासी दख़ल रखते हैं. क़ानूनी तौर पर वेश्यावृत्ति के लिए मशहूर थाइलैंड सरीखे देश के प्रधानमंत्री ने वीर को द फ्रेंड ऑफ थाइलैंड अवार्ड से सम्मानित किया है. अरबपतियों से ख़ातिरदारी कराने में वीर सांघवी पुराने माहिर हैं. वह टाटा समूह के आलीशान होटलों में ठहरते हैं तो उनकी विमान यात्राओं का बिल अंबानी भरते हैं. ज़ाहिर है, इन सबके एवज में वीर सांघवी सरकारी गलियारे में नीरा राडिया जैसी दलालों की बैसाखी बन अपनी पत्रकारिता की बोली लगाते हैं.
जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में ही जब ए राजा पर ढेरों आरोप लगे थे, तब भी उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मर्ज़ी के ख़िला़फ दोबारा संचार मंत्री बनाया गया. तो इसका साफ मतलब है कि इसमें सोनिया गांधी की सहमति थी. और अगर ऐसा नहीं था तो इसका आशय यह है कि यूपीए सरकार में मंत्री सत्ता के दलाल बनाते हैं, न कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह. 29 नवंबर 2008 को सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा के ख़िला़फ तमाम सबूत सौंपते हुए पत्र लिखा कि ए राजा को मंत्रिमंडल से फौरन हटा दिया जाए, क्योंकि वह लगातार घोटाले कर रहे हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. 31 अक्टूबर 2009, 8 मार्च और 13 मार्च 2010 को सुब्रमण्यम स्वामी ने फिर से मनमोहन सिंह के नाम चिट्ठियां लिखीं, तब 19 मार्च 2010 को स्वामी के पास केंद्र का जवाब आया कि राजा को कैबिनेट से हटाने या उन पर मुक़दमा चलाने का फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि अभी जांच चल रही है और सबूत इकट्ठे किए जा रहे हैं. आख़िरकार 12 अप्रैल 2010 को स्वामी ने अदालत में इस सिलसिले में अपनी याचिका दाख़िल की. अदालत ने उनकी अपील मान ली है. स्वामी की याचिका पर गर्मी की छुट्टियों के बाद सुनवाई होगी.
लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार को इस महाघोटाले के बाबत कोई जानकारी नहीं थी. नीरा राडिया और राजा के बीच बातचीत के टेपों के आधार पर आयकर विभाग ने सरकार को अपनी अंतरिम जांच रिपोर्ट जुलाई 2009 में ही सौंप दी थी. सरकार इस काले धंधे की हक़ीक़त से वाक़ि़फ हो चुकी थी. फिर भी वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, क्योंकि इस खेल में अगर नीरा राडिया नायिका के तौर पर भूमिका निभा रही थी तो कांग्रेस के कई कद्दावर नेता नीरा के मोहरे के तौर पर इस्तेमाल हो रहे थे. सरकार की नीतियों और नियमों को प्रभावित करने वाले कॉरपोरेट जगत के एक मज़बूत हिस्से जैसे टाटा, अंबानी, वेदांता, सहारा एयरलाइंस, रेमंड, सीआईआई, डीबी, यूनीटेक, स्टार न्यूज़, एनडीटीवी, नई दुनिया, न्यूज़ एक्स आदि नीरा राडिया की गोद में खेल रहे थे. नीरा की कंपनियों में भारत सरकार के दिग्गज नौकरशाह रह चुके पूर्व ऊर्जा सचिव और ट्राई अध्यक्ष प्रदीप बैजल, पूर्व वित्त सचिव सी एम वासुदेव, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन एस के नरुला, फॉरेन इंवेस्टमेंट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अजय दुआ वग़ैरह सलाहकार और निदेशक के तौर पर नीरा के जरख़रीद बन कर उसका हुक्म बजा रहे हैं. ज़ाहिर सी बात है, नीरा राडिया महज़ एक दलाल होते हुए भी इतनी मज़बूत है कि सरकार अगर उसके ख़िला़फ कार्रवाई करती है तो यह उसके अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारने सरीखा होगा. यही वजह है कि मामले की जांच करने वाले सीबीआई डीआईजी विनीत अग्रवाल ने जब सरकार से दोषियों पर मुक़दमा चलाने की इजाज़त मांगी तो उनका तबादला कर वापस उनके होम काडर भेज दिया गया.
सोचिए ज़रा, आईपीएल विवाद में शशि थरूर और उनकी मित्र सुनंदा पुष्कर की क्या फज़ीहत हुई. राहुल गांधी के ख़ास होने के बावजूद शशि का मंत्रालय उनके हाथ से निकल गया. साठ करोड़ का बोफोर्स घोटाला हुआ और देश की सरकार बदल गई. पर 60 हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद भी संचार मंत्री ए राजा न स़िर्फ अपने पद पर बने हुए हैं, बल्कि उनकी चहेती नीरा राडिया अपना सारा माल समेट कर लंदन में ऐश कर रही है. और तो और, भारत में उसकी सभी पीआर कंपनियां अपना काम पहले की तरह ही ठाठ से कर रही हैं, पर सरकार चुप है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ख़ामोश हैं. भारतीय युवाओं को मेहनत और ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले और विरोधियों की ख़ामियों पर धारदार हमला बोलने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी मूकदर्शक की भूमिका में हैं. क्या वाकई नीरा राडिया के रिश्ते सोनिया गांधी से घनिष्ठता भरे हैं? क्योंकि नीरा राडिया तो यही प्रचारित कर रही है. यक़ीनन, ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी को चाहिए कि वह साबित करें कि उनका नीरा राडिया और इस घोटाले से कोई संबंध नहीं है और डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी झूठ बोल रहे हैं तथा इसकी शुरुआत तत्काल इस पूरे मामले की गंभीर जांच की घोषणा से हो...............
Subscribe to:
Posts (Atom)